Republic day speech in Hindi
26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर भाषण
गणतंत्र दिवस के संदर्भ में मैंने जो विचार दिया है इस विचार में आप समय के अनुसार कुछ बदलाव भी कर सकते हैं। जैसे प्रकृति के वर्णन के संदर्भ में मैंने एक उदाहरण दिया है कि बादलों की अट्टालिका उमड़ - घुमड़ रही है। अगर बादल साफ है और सूरज का प्रकाश तेज है तो हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि इस उत्सव पर जो हमने झंडा फहराया है उस झंडा को प्राकृतिक भी अपने प्रकाश से प्रकाशित कर रही है....... यह तो आपके भाषा पर पकड़ पर निर्भर करता है और आप इस भाषण का सहारा लेकर एक अच्छा भाषण आप दे सकते हैं ।
गणतंत्र दिवस के संदर्भ में मैंने जो विचार दिया है इस विचार में आप समय के अनुसार कुछ बदलाव भी कर सकते हैं। जैसे प्रकृति के वर्णन के संदर्भ में मैंने एक उदाहरण दिया है कि बादलों की अट्टालिका उमड़ - घुमड़ रही है। अगर बादल साफ है और सूरज का प्रकाश तेज है तो हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि इस उत्सव पर जो हमने झंडा फहराया है उस झंडा को प्राकृतिक भी अपने प्रकाश से प्रकाशित कर रही है....... यह तो आपके भाषा पर पकड़ पर निर्भर करता है और आप इस भाषण का सहारा लेकर एक अच्छा भाषण आप दे सकते हैं ।
Republic day speech in Hindi for students or teachers
26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर छात्रों एवं अध्यापकों के लिए भाषण
गणतंत्र दिवस एक राष्ट्रीय त्योहार है। पूरे भारत में बच्चे, युवा, बूढ़े सभी जाति संप्रदाय के लोग इसे बड़े ही उत्साह के साथ मनाते हैं। आज का दिन गर्व से भरा हुआ है। मैं उन सब भाग्यशाली में से एक हूं जिसे इस खुशी के पावन पर्व पर अपनी अभिव्यक्ति व्यक्त करने का सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ है।
सबसे पहले प्रधानाचार्य, मुख्य अतिथि महोदय का हृदय से आभार प्रकट करता हूं कि इस पावन पर्व पर आपने जो समय दिया है उसके लिए आपका कृतज्ञ हूं। आपकी उपस्थिति हमारी खुशी में चार चांद लगा रही है। आकाश में फैली हुई बादलों की जो अट्टालिका उमड़ घुमड़ रही है, हमारे हौसलों को और भी आनंदित बना रही है।
आज के ही दिन आज से 7 दशक पूर्व जब हम गणतंत्र दिवस मनाने के लिए हौसलों के साथ इकट्ठा हुए थे तो उत्साहरूपी रक्त संचार हमारे मन और मस्तिष्क पर हावी थी। जो आजादी शब्द मात्र से हमें खुशी प्राप्त हुई। गणतंत्र की स्थापना ने हमारे खुशी को एक नया आयाम दिया। वह आयाम था अपना संविधान का। संविधान कोई नया नहीं था संविधान निर्माण के कुछ ऐतिहासिक तथ्य जिसे भुलाया नहीं जा सकता।

Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी ने 1931 को अपनी पत्रिका यंग इंडिया में संविधान के संदर्भ में अपनी बात इस तरह रखी थी कि मैं भारत के लिए ऐसा संविधान चाहता हूं जो उसे गुलामी और अधीनता से मुक्त करे......, मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूं कि सबसे गरीब व्यक्ति को भी ऐसा महसूस हो देश बनाने में उसकी भी भागीदारी है।...... ऐसा भारत जिसमें सभी समुदाय के लोग मेल जोल से रहें। ऐसा भारत जहां छुआछूत की भावना ना रहे, महिलाओं को अधिकार मिले, ऐसी संविधान की कल्पना आजादी के पूर्व हमारे राष्ट्रपिता द्वारा कही गई थी।
जब भारत आजाद हुआ तो सबसे पहले अपना संविधान बनाने की बात सामने आई। अनेक भारतीय देशप्रेमियों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। सर्वसम्मति से राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया तथा संविधान लिखने वाली सभा में लगभग 299 सदस्य थे। भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्यों को समझने और परखने में अनेक भारतीय नेताओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
श्री भीमराव अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, कन्हैया लाल, माणिकलाल मुंशी, जवाहरलाल नेहरू, सोमनाथ लाहिड़ी, बलदेव सिंह, श्री दुर्गाबाई देशमुख, एच.सी मुखर्जी, जयपाल सिंह, टी.टी कृष्णानामचरी और राजेंद्र प्रसाद ने योगदान दिया। तब जाकर भारतीय संविधान का इस प्रारूप को 26 नवंबर 1949 को देश को समर्पित किया जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। इसी दिन से हम लोग प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस मनाते हैं।

Dr. B.R Ambedkar and team for the making of the constitution
हमारे संविधान में महात्मा गांधी के वे विचार जिसको उन्होंने अपनी पत्रिका यंग इंडिया में 1931 में प्रकाशित किया था उसका ध्यान रखा गया। यही तो राष्ट्रपिता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि को प्रदर्शित करती है। 100 वर्षों के गुमनाम आजादी के लिए कई देश प्रेमियों ने अपनी बलिदान दे दी, आज संविधान गर्व से कह रही है कि उनकी कुर्बानी जाया नहीं होगी। बर्फ की सिल्लियों पर भारत मां के सच्चे सपूत अपनी मां की रक्षा के लिए कोड़े खाने के बावजूद देश का झंडा नहीं झुकेगा का संकल्प हमें आजादी के रूप में प्राप्त हुई।
भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस की कुर्बानियां भी कुछ कह रही है तथा महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा ने गुलामी की जंजीरों को नरम बनाया वहीं गरमदल के नेतृत्व ने आजादी को समीप ला दिया। देश के प्रति उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना होनी चाहिए तथा देश को सच्ची श्रद्धांजलि फूलों को चढ़ा कर औपचारिकता करने के पूर्व उनके आदर्शों को जीवन में उतारना चाहिए तभी हम अपने संविधान को सुरक्षित रख सकते हैं।
हर भारतवासी का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि हमें उसकी रक्षा करने के लिए उनके आदर्शो को अपनाना चाहिए जिसे हमारे भारत मां के सच्चे सपूत ने अपनी बलिदान देकर पूरा किया, उनके आदर्शो को अपनाना ही सच्ची श्रद्धांजलि उनके प्रति होगी।
यह सभी जानते हैं कि तिरंगा देश के स्वाभिमान, धैर्य, समृद्धि तथा शांति के साथ निरंतर गतिशील होकर आगे बढ़ने का प्रतीक है। वहीं इसकी रक्षा के लिए हर भारतीय को निरंतर अपने उन बलिदानियों से प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि हर भारतीय देश की रक्षा के लिए संकट में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले सकें।
आज की झांकियां भी कुछ कह रही है। भारत के विभिन्न राज्यों की हलचल इन झांकियों में देखने को मिल रही है। कोई झांकी पूर्वोत्तर राज्यों की गाथा को याद दिला रही है तो कोई दक्षिण के राज्यों की सामाजिक समृद्धि तथा सांस्कृतिक उन्नति को दर्शाती है। वहीं पश्चिम के राज्यों की भावनाएं तो कहीं उत्तर के राज्यों की व्यवस्थाओं को इंकित करती है। आखिर यह सब क्या है। उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक का भारत एक है, ऊंच - नीच का भेद - भाव, अमीर - गरीब की भावनाएं गंगा में गंगोत्री से बह कर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो रही है यही तो भारत की संस्कृति की विशेषता है। हमारा भारत गंगोत्री की तरह पवित्र है।

26th January parade at red fort
अंत में मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारा संविधान एक रामायण है, कुरान है, बाईबल है और गुरु ग्रंथ है। जिस प्रकार के अनेक धर्मों के लोग अपने धर्म पुस्तकों को महत्व देते हैं लेकिन लोगों के लिए संविधान धर्म ग्रंथ से भी ऊपर है, जिस खुशी में हम लोग प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस मनाते हैं ।
देश के विकास, प्रगति आज की संविधान के निर्माण के संदर्भ में जितनी बात कही जाए कम होगी कबीर ने कहा है -
"सात समंदर की मसि करो, लेखनी सब बन राई
धरती सब कागद करो, हरि गुण लिखा ना जाई"
ठीक उसी प्रकार गणतंत्र दिवस के संदर्भ में जितनी बात कही जाए, लिखी जाए कम होगी । अतः समय अभाव के कारण मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।
जय हिंद जय भारत भारत माता की जय
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Mahatma Gandhi |
महात्मा गांधी ने 1931 को अपनी पत्रिका यंग इंडिया में संविधान के संदर्भ में अपनी बात इस तरह रखी थी कि मैं भारत के लिए ऐसा संविधान चाहता हूं जो उसे गुलामी और अधीनता से मुक्त करे......, मैं ऐसे भारत की कल्पना करता हूं कि सबसे गरीब व्यक्ति को भी ऐसा महसूस हो देश बनाने में उसकी भी भागीदारी है।...... ऐसा भारत जिसमें सभी समुदाय के लोग मेल जोल से रहें। ऐसा भारत जहां छुआछूत की भावना ना रहे, महिलाओं को अधिकार मिले, ऐसी संविधान की कल्पना आजादी के पूर्व हमारे राष्ट्रपिता द्वारा कही गई थी।
जब भारत आजाद हुआ तो सबसे पहले अपना संविधान बनाने की बात सामने आई। अनेक भारतीय देशप्रेमियों तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। सर्वसम्मति से राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का अध्यक्ष बनाया गया तथा संविधान लिखने वाली सभा में लगभग 299 सदस्य थे। भारतीय संविधान के बुनियादी मूल्यों को समझने और परखने में अनेक भारतीय नेताओं ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया।
श्री भीमराव अंबेडकर, श्यामा प्रसाद मुखर्जी, कन्हैया लाल, माणिकलाल मुंशी, जवाहरलाल नेहरू, सोमनाथ लाहिड़ी, बलदेव सिंह, श्री दुर्गाबाई देशमुख, एच.सी मुखर्जी, जयपाल सिंह, टी.टी कृष्णानामचरी और राजेंद्र प्रसाद ने योगदान दिया। तब जाकर भारतीय संविधान का इस प्रारूप को 26 नवंबर 1949 को देश को समर्पित किया जिसे 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। इसी दिन से हम लोग प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस मनाते हैं।
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Dr. B.R Ambedkar and team for the making of the constitution |
हमारे संविधान में महात्मा गांधी के वे विचार जिसको उन्होंने अपनी पत्रिका यंग इंडिया में 1931 में प्रकाशित किया था उसका ध्यान रखा गया। यही तो राष्ट्रपिता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि को प्रदर्शित करती है। 100 वर्षों के गुमनाम आजादी के लिए कई देश प्रेमियों ने अपनी बलिदान दे दी, आज संविधान गर्व से कह रही है कि उनकी कुर्बानी जाया नहीं होगी। बर्फ की सिल्लियों पर भारत मां के सच्चे सपूत अपनी मां की रक्षा के लिए कोड़े खाने के बावजूद देश का झंडा नहीं झुकेगा का संकल्प हमें आजादी के रूप में प्राप्त हुई।
भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस की कुर्बानियां भी कुछ कह रही है तथा महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा ने गुलामी की जंजीरों को नरम बनाया वहीं गरमदल के नेतृत्व ने आजादी को समीप ला दिया। देश के प्रति उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना होनी चाहिए तथा देश को सच्ची श्रद्धांजलि फूलों को चढ़ा कर औपचारिकता करने के पूर्व उनके आदर्शों को जीवन में उतारना चाहिए तभी हम अपने संविधान को सुरक्षित रख सकते हैं।
हर भारतवासी का यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि हमें उसकी रक्षा करने के लिए उनके आदर्शो को अपनाना चाहिए जिसे हमारे भारत मां के सच्चे सपूत ने अपनी बलिदान देकर पूरा किया, उनके आदर्शो को अपनाना ही सच्ची श्रद्धांजलि उनके प्रति होगी।
यह सभी जानते हैं कि तिरंगा देश के स्वाभिमान, धैर्य, समृद्धि तथा शांति के साथ निरंतर गतिशील होकर आगे बढ़ने का प्रतीक है। वहीं इसकी रक्षा के लिए हर भारतीय को निरंतर अपने उन बलिदानियों से प्रेरणा लेनी चाहिए, ताकि हर भारतीय देश की रक्षा के लिए संकट में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले सकें।
आज की झांकियां भी कुछ कह रही है। भारत के विभिन्न राज्यों की हलचल इन झांकियों में देखने को मिल रही है। कोई झांकी पूर्वोत्तर राज्यों की गाथा को याद दिला रही है तो कोई दक्षिण के राज्यों की सामाजिक समृद्धि तथा सांस्कृतिक उन्नति को दर्शाती है। वहीं पश्चिम के राज्यों की भावनाएं तो कहीं उत्तर के राज्यों की व्यवस्थाओं को इंकित करती है। आखिर यह सब क्या है। उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम तक का भारत एक है, ऊंच - नीच का भेद - भाव, अमीर - गरीब की भावनाएं गंगा में गंगोत्री से बह कर बंगाल की खाड़ी में विलीन हो रही है यही तो भारत की संस्कृति की विशेषता है। हमारा भारत गंगोत्री की तरह पवित्र है।
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26th January parade at red fort |
अंत में मैं यह कहना चाहता हूं कि हमारा संविधान एक रामायण है, कुरान है, बाईबल है और गुरु ग्रंथ है। जिस प्रकार के अनेक धर्मों के लोग अपने धर्म पुस्तकों को महत्व देते हैं लेकिन लोगों के लिए संविधान धर्म ग्रंथ से भी ऊपर है, जिस खुशी में हम लोग प्रत्येक वर्ष गणतंत्र दिवस मनाते हैं ।
देश के विकास, प्रगति आज की संविधान के निर्माण के संदर्भ में जितनी बात कही जाए कम होगी कबीर ने कहा है -
"सात समंदर की मसि करो, लेखनी सब बन राई
धरती सब कागद करो, हरि गुण लिखा ना जाई"
ठीक उसी प्रकार गणतंत्र दिवस के संदर्भ में जितनी बात कही जाए, लिखी जाए कम होगी । अतः समय अभाव के कारण मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं।
जय हिंद जय भारत भारत माता की जय
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